Saturday 9 December 2017

संतो की मौज साखी


सन्तों की अपनी ही मौज होती है! एक संत अपने शिष्य के साथ किसी अजनबी नगर में पहुंचे। रात हो चुकी थी और वे दोनों सिर छुपाने के लिए किसी आसरे की तलाश में थे। उन्होंने एक घर का दरवाजा खटखटाया, वह एक धनिक का घर था और अंदर से परिवार का मुखिया निकलकर आया। वह संकीर्ण वृत्ति का था, उसने कहा – “मैं आपको अपने घर के अंदर तो नहीं ठहरा सकता लेकिन तलघर में हमारा स्टोर बना है। आप चाहें तो वहां रात को रुक सकते हैं, लेकिन सुबह होते ही आपको जाना होगा।” वह संत अपने शिष्य के साथ तलघर में ठहर गए। वहां के कठोर फर्श पर वे सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी संत को दीवार में एक दरार नजर आई। संत उस दरार के पास पहुंचे और कुछ सोचकर उसे भरने में जुट गए। शिष्य के कारण पूछने पर संत ने कहा-“चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं।”


अगली रात वे दोनों एक गरीब किसान के घर आसरा मांगने पहुंचे। किसान और उसकी पत्नी ने प्रेमपूर्वक उनका स्वागत किया। उनके पास जो कुछ रूखा-सूखा था, वह उन्होंने उन दोनों के साथ बांटकर खाया और फिर उन्हें सोने के लिए अपना बिस्तर दे दिया। किसान और उसकी पत्नी नीचे फर्श पर सो गए। सवेरा होने पर संत व उनके शिष्य ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी रो रहे थे क्योंकि उनका बैल खेत में मरा पड़ा था। यह देखकर शिष्य ने संत से कहा- ‘गुरुदेव, आपके पास तो कई सिद्धियां हैं, फिर आपने यह क्यों होने दिया? उस धनिक के पास सब कुछ था, फिर भी आपने उसके तलघर की मरम्मत करके उसकी मदद की, जबकि इस गरीब ने कुछ ना होने के बाद भी हमें इतना सम्मान दिया फिर भी आपने उसके बैल को मरने दिया। संत फिर बोले-“चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं।”

उन्होंने आगे कहा- ‘उस धनिक के तलघर में दरार से मैंने यह देखा कि उस दीवार के पीछे स्वर्ण का भंडार था। चूंकि उस घर का मालिक बेहद लोभी और कृपण था, इसलिए मैंने उस दरार को बंद कर दिया, ताकि स्वर्ण भंडार उसके हाथ ना लगे। इस किसान के घर में हम इसके बिस्तर पर सोए थे। रात्रि में इस किसान की पत्नी की मौत लिखी थी और जब यमदूत उसके प्राण हरने आए तो मैंने रोक दिया। चूंकि वे खाली हाथ नहीं जा सकते थे, इसलिए मैंने उनसे किसान के बैल के प्राण ले जाने के लिए कहा। यह सुनकर शिष्य संत के समक्ष नतमस्तक हो गया।ठीक इसी तरह गुरु की कृपा वह नहीं है जो हम चाहते बल्कि गुरु-कृपा तो वह है जो गुरुदेव चाहते हैं
।। राधा स्वामी जी ।।
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अल्लाह की मर्जी साखी


ये कहानी बड़े महाराज जी ने एक सत्संग में सुनाई एक बादशाह था, वह जब नमाज़ के लिए मस्जिद जाता, तो 2 फ़क़ीर उसके दाएं और बाएं बैठा करते! दाईं तरफ़ वाला कहता: “या अल्लाह! तूने बादशाह को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी दे दे!” बाईं तरफ़ वाला कहता: “ऐ बादशाह! अल्लाह ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे!” दाईं तरफ़ वाला फ़क़ीर बाईं तरफ़ वाले से कहता: “अल्लाह से माँग! बेशक वह सबसे बैहतर सुनने वाला है!” बाईं तरफ़ वाला जवाब देता: “चुप कर बेवक़ूफ़” एक बार बादशाह ने अपने वज़ीर को बुलाया और कहा कि मस्जिद में दाईं तरफ जो फ़क़ीर बैठता है वह हमेशा अल्लाह से मांगता है तो बेशक अल्लाह उसकी ज़रूर सुनेगा, लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है, तो तुम ऐसा करो कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उसमें अशर्फियाँ डाल दो और वह उसको दे आओ!
वज़ीर ने ऐसा ही किया… अब वह फ़क़ीर मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे फ़क़ीर को चिड़ाता हुआ बोला: “हुह… बड़ा आया ‘अल्लाह देगा…’ वाला, यह देख बादशाह से माँगा, मिल गया ना?” खाने के बाद जब इसका पेट भर गया तो इसने खीर से भरा बर्तन उस दूसरे फ़क़ीर को दे दिया और कहा: “ले पकड़… तू भी खाले, बेवक़ूफ़ अगले दिन जब बादशाह नमाज़ के लिए मस्जिद आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला फ़क़ीर तो आज भी वैसे ही बैठा है लेकिन दाईं तरफ वाला ग़ायब है!
बादशाह नें चौंक कर उससे पूछा: “क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला?”
फ़क़ीर: “जी मिला ना बादशाह सलामत, क्या लज़ीज़ खीर थी, मैंने ख़ूब पेट भर कर खायी!”
बादशाह: “फिर?”
फ़क़ीर: “फ़िर वह जो दूसरा फ़क़ीर यहाँ बैठता है मैंने उसको देदी, बेवक़ूफ़ हमेशा कहता रहता है: ‘अल्लाह देगा, अल्लाह देगा!’
बादशाह मुस्कुरा कर बोला: “बेशक, अल्लाह ने उसे दे दिया!”
इसी तरह हमें भी उस कुल मालिक से ही अरदास करनी चाहिए
॥ राधा स्वामी जी ॥
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सिमरन साखी


एक बार गोस्वामी जी से किसी ने पूछा -कभी-२ भक्ति करने को मन नहीं करता फिर भी सिमरन जपने के लिये बैठ जाते है ;क्या उसका भी कोई फल मिलता है ?
तुलसी दास जी ने मुस्करा कर कहा “तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीज ।भौम पड़ा जामे सभी उल्टा सीधा बीज ।।अर्थात भूमि में जब बीज बोये जाते है तो यह नहीं देखा जाता कि बीज उल्टे पड़े है या सीधे पर फिर भी कालांतर में फसल बन जाती है इसी प्रकार नाम सुमिरन कैसे भी किया जाये उसके जपने का फल अवश्य ही मिला करता है !
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चरित्र साखी


मानव जीवन की स्थायी निधि है चरित्र सद्भावना के लिए आवश्यक है चरित्र। सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता ही चरित्र है। जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हैं, उन्हीं को चरित्रवान कहा जा सकता है। संयत इच्छाशक्ति से प्रेरित सदाचार का नाम ही चरित्र है।चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। जीवन में सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र ही है। चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार और सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग हैं, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित-व्यवस्थित जीवन, शांत-गंभीर मनोदशा चरित्र के परोक्ष अंग हैं। किसी व्यक्ति के विचार इच्छाएं, आकांक्षाएं और आचरण जैसा होता है, उन्हीं के अनुरूप चरित्र का निर्माण होता है।
उत्तम चरित्र जीवन को सही दिशा में प्रेरित करता है। चरित्र निर्माण में साहित्य का बहुत महत्व है। विचारों को दृढ़ता और शक्ति प्रदान करने वाला साहित्य आत्म निर्माण में बहुत योगदान करता है। इससे आंतरिक विशेषताएं जाग्रत होती हैं। यही जीवन की सही दिशा का ज्ञान है।मनुष्य जब अपने से अधिक बुद्धिमान, गुणवान, विद्वान और चरित्रवान व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो उसमें स्वयं ही इन गुणों का उदय होता है। वह सम्मान का पात्र बन जाता है। जब मनुष्य साधु-संतों और महापुरुषों की संगति में रहता है, तो यह प्रत्यक्ष सत्संग होता है, किंतु जब महापुरुषों की आत्मकथाएं और श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन करता है, तो उसे परोक्ष रूप से सत्संग का लाभ मिलता है, जो सद्भावना के लिए आवश्यक है। मनुष्य सत्संग के माध्यम से अपनी प्रकृति को उत्तम बनाने का प्रयत्न कर सकता है, जिससे सद्भावना कायम रखी जा सके।
॥ राधा स्वामी जी ॥
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मृत्यु की त्यारी साखी


नानक जी के पास सतसंग में एक छोटा लड़का प्रतिदिन आकर बैठ जाता था।
एक दिन नानक जी ने उससे पूछाः- “बेटा, कार्तिक के महीने में सुबह इतनी जल्दी आ जाता है, क्यों?”
वह छोटा लड़का बोलाः- “महाराज, क्या पता कब मौत आकर ले जाये?”
नानक जीः- “इतनी छोटी-सी उम्र का लड़का, अभी तुझे मौत थोड़े मारेगी?
अभी तो तू जवान होगा, बूढ़ा होगा, फिर मौत आयेगी।
लड़का बोलाः- “महाराज, मेरी माँ चूल्हा जला रही थी, बड़ी-बड़ी लकड़ियों को आग ने नहीं पकड़ा तो फिर उन्होंने मुझसे छोटी-छोटी लकड़ियाँ मँगवायी।
माँ ने छोटी-छोटी लकड़ियाँ डालीं तो उन्हें आग ने जल्दी पकड़ लिया।
इसी तरह हो सकता है मुझे भी छोटी उम्र में ही मृत्यु पकड़ ले, इसीलिए मैं अभी से सतसंग में आ जाता हूँ।”
इसलिए जल्दी से परमात्मा से प्रेम करके जीवन सफल बना लो इन स्वांसो से बडा दगाबाज कोइ नही है, कहीं बाद मे पछताना ना पडे..
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सब जात पात बराबर है साखी


बाबा सावन सिंह जी एक बार पहाड़ी इलाके मैं सत्संग करने के लिए गए वहां पर लोग जात पात को बहुत मानते हैं वहां पर सत्संग घर बन रहा था रोज सेवा होती थी और रोज लंगर बनता था बाबा जी ने २ घंटे वहां पर सत्संग फ़रमाया और सत्संग करने के बाद बाबा जी ने सांगत को बोला की अगर किसी को कुछ पूछना है तो पूछ सकता है
संगत मैं आदमी रोते हुए उठा और बोला की बाबा जी मैं छोटी जात का हूँ जिस वजे से मुझ से यहाँ पर कोई अचे से बात नई करता और ना ही कोई सेवा करने का मौका देता है मेने सोचा था के मालिक के घर सब बराबर है पर यहाँ पर ऐसा बेधभाव क्यों किया जाता है
बाबा जी ने बड़े सख्त शब्दों में कहा कोई न जब तक मालिक बड़ी जाट वालों को छोटी जाट वालों मैं जन्म नहीं देता यह नहीं सुधरेंगे बाबा जी के गुस्से वाले यह अल्फ़ाज़ सुन कर बाबा जी के आगे हाथ जोड़ लिए और माफ़ी मांगी 
बाबा जी ने फरमाया कि हम किसी बन्दे को निचा समझते हैं या उसको नफरत करते है तो याद रखो के हम उस मालिक को ही नफरत| हर जीव के अन्दर वो मालिक बैठा है | मालिक ने तो इंसान को बनाया था यह जात पात तो हमने बनाई है |
जो यह सोचता है के मैं बढ़ी जात का हूँ केवल मुझे ही भगती करने का अधिकार है वो सबसे बढ़ा मुर्ख है
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गुरु सब एक है साखी


बाबा सरदार बहादुर सिंह जी सत्संग मैं बैठे थे | हजूर महाराज सावन सिंह जी का कोई प्रेमिओ सेवक सर नींचे कर के बोला | मैं डेरा चुद कर जाना चाहता हूँ अब मेरा यहाँ दिल नहीं लगता| मुझे इन ईंटो और इमारतों को देख कर बाबा सावन सिंह जी की याद आ जाती है | और मेरा दिल बैठ जाता है |यहाँ मैं और नहीं जी सकता |मैं जाना चाहता हूँ आप किरपा कर के मुझे जाने की इजाजत दीजिये | वो अभी भी निचे सर किये रो रहा था |
उनकी इस बात पर सरदार बहदुर सिंह जी कहने लगे | की ठीक है आप मेरे सामने बैठ जाओ और बढे बाबा जी का ध्यान करो
जब उसने ध्यान करना शुरू किया तो बाबा जी ने उसे सर ऊपर करने को कहा | जब उसने अपना सर उठाया तो सामने उसे बाबा सावन सिंह जी के दर्शन हो गए | और बाबा सावन सिंह जी कहने लगे की अब से तुम मुझे इनमे ही पाओगे । इतना कह कर बाबा जी चले गए |
तब उस सत्संगी ने बाबा जगत सिंह जी के पवन मैं सर रख कर रोना माफ़ी मांगी और डेरे से जाने का विचार बदल दिया |
शिक्षा : महाराज सावन सिंह जी के कहने का मतलब यही था की हम सब एक ही हैं आप किसी का ध्यान करोगे वो उसी रूप मैं आपके सामने परगट हो जायेंगे | हम लोग बेकार मैं बाबा जी यह कह कर बाँट देते हैं की मेने तो बाबा चरण सिंह जी से नाम दान लिया या मेने बाबा गुरिंदर सिंह जी से नाम लिया है |हमारा गुरु तो एक ही है बस हमारे सामने रूप बदल जाते हैं
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चाय वाले की साखी


यह बात काफी पुरानी है | एक बार बाबा जी सत्संग करके आ रहे थे | रस्ते मैं बाबा जी का मन चाय पिने को हुआ | उसनहो ने अपने ड्राइवर को कहा के बेटा हमे चाय पीनी है | ड्राइवर गाड़ी 5 स्टार होटल के आगे कड़ी कर दी बाबा जी ने कहाँ नहीं आगे चलो यहाँ नहीं , फिर ड्राइवर गाड़ी किसी होटल के आगे कड़ी कर दी | बाबा जी ने वह भी मन कर दिया | काफी आगे जाके एक छोटी सी दुकान आई बाबा जी ने कहाँ की यहाँ रोक दो यहाँ पे पिटे हैं चाय | ड्राइवर चाय वाले के पास गया और बोला के अछि से चाय बनादो | जब दुकानदार ने पैसों वाला गल्ला खोला तो उसमे बाबा जी क सरूप लगा हुआ था | बाबा जी का सरूप देख कर ड्राइवर ने दुकानदार से पूछा के तुम इन्हे जानते हो कभी देखा है इन्हे| 
तो दुकानदार ने कहा के मेने इनको देखने जाने के लिए पैसे इकठे किये थे जी के चोरी हो गए | और मैं नहीं जा पाया |और मुझे यकीन है के बाबा जी मुझे यही आ कर मिलेंगे | तो ड्राइवर ने कहा के जाओ और चाय उस कार मैं दे कर आओ |
तो दुकानदार ने बोला के अगर मैं चाय देने के लिए चला गया तो कहीं फिर से मेरे पैसे चोरी न हो जाये | तो ड्राइवर ने कहा की चिंता मत करो अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारे पैसे अपनी जेब से दूंगा | दुकानदार चाय कार मैं देने के लिए चला गया |
जब वहां उसने बाबा जी के देखा तो हैरान हो गया | आँखों मैं आंसू तो बाबा जी कहा के तूने कहा था के मैं तुम्हे यहीं मिलने आओं और अब मैं तुमको मिलने आया हूँ तो तुम रो रहे हो |
इतना प्यार था उस आदमी के अन्दर आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे | जब मन सच हो और इरादे नेक हो तो भगवन को भी आना पड़ता है | अपन भगत के लिए | आप भी बाबा जी को दिल से याद करा करो बाबा जी आपकी भी बात सुने गे|
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रूहानियत कपड़ों में नहीं सिमरन में है साखी


एक बार एक पाठी सत्संग करने के लिए सत्संग घर मे गया | उस पाठी ने पेंट कमीज पहन राखी थी वहां के सेक्टरी ने उनको बहुत बुरा भला कहा | और कहने लगा की अगर सत्संग करना है तो कुड़ता पजामा पहन के आओ | उस दिन उस पाठी का बहुत दिल दुखा | वो पाठी भजन सिमरन वाला था | बाबा जी के प्यारे का दिल दुखा तो समझो बाबा जी का दिल दुखा |
उस सेक्टरी को एक बार UK आने का मौका मिला | जो हमेशा सफ़ेद कपड़ों के बारे में कहता था | वो सतसग सुनने के लिए गया बाबा जी ने सत्संग किया और शाम को टहलने के लिए निकलते वक़्त जब बाबा जी ए तो सेक्टरी क्या देखता है की बाबा जी ने काली पेंट और कमीज दाल रखी है | यह देख कर उसे एहसास हो गया के बाबा हमेशा क्यों कहते हैं की रूहानियत कपड़ों में नहीं बहजन सिमरन में है
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इंतजार साखी


एक संत बहुत दिनों से नदी के किनारे बैठे थे, एक दिन किसी व्यकि ने उससे पुछा आप नदी के किनारे बैठे-बैठे क्या कर रहे हैं संत ने कहा, इस नदी का जल पूरा का पूरा बह जाए इसका इंतजार कर रहा हूँ।

व्यक्ति ने कहा यह कैसे हो सकता है. नदी तो बहती ही रहती है सारा पानी अगर बह भी जाए तो, आप को क्या करना। संत ने कहा मुझे दुसरे पार जाना है। सारा जल बह जाए, तो मैं चल कर उस पार जाऊँगा।

उस व्यक्ति ने गुस्से में कहा, आप पागल नासमझ जैसी बात कर रहे हैं, ऐसा तो हो ही नही सकता। तब संत ने मुस्कराते हुए कहा यह काम तुम लोगों को देख कर ही सीखा है।

तुम लोग हमेशा सोचते रहते हो कि जीवन मे थोड़ी बाधाएं कम हो जाएं, कुछ शांति मिले, फलाना काम खत्म हो जाए तो सेवा, साधन -भजन, सत्कार्य करेगें।

जीवन भी तो नदी के समान है यदि जीवन मे तुम यह आशा लगाए बैठे हो, तो मैं इस नदी के पानी के पूरे बह जाने का इंतजार क्यों न करूँ।
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तुमने अपना वादा तोड़ा है साखी


एक आदमी की पत्नी अचानक से बहुत बीमार पड़ गयी . मरने से पहले उसने अपने पति से कहा , “ मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ …. तुम्हे छोड़ कर नहीं जाना चाहती… मैं नहीं चाहती की मेरे जाने के बाद तुम मुझे भुला दो और किसी दूसरी औरत से शादी करो … वादा करो कि मेरे मरने के बाद तुम किसी और से प्रेम नहीं करोगे …वर्ना मेरी आत्मा तुम्हे चैन से जीने नहीं देगी ”
उसके जाने के कुछ महीनो तक उस आदमी ने किसी दूसरी औरत की तरफ देखा तक नहीं पर एक दिन उसकी मुलाक़ात एक ऐसी लड़की से हुई जिसे वह चाहने लगा . बात बढ़ते -बढ़ते शादी तक आ गयी और उनकी शादी हो गयी .
शादी के ठीक बाद आदमी को लगा कि कोई उससे कुछ कह रहा है , मुड़ कर देखा तो वो उसकी पहली पत्नी की आत्मा थी.
आत्मा बोली , “ तुमने अपना वादा तोड़ा है , अब मैं हर रोज तुम्हे परेशान करने आउंगी .”
और इतना कह कर वो गायब हो गयी .
आदमी घबरा गया , उसे रात भर नींद नहीं आई .
अगले दिन भी रात को उसे वही आवाज़ सुनाई दी .
“मैं तुम्हे चैन से नहीं जीने दूंगी…. मैं जानती हूँ कि आज तुमने अपनी नयी पत्नी से क्या-क्या बातें की ,..” और उसने आदमी को अक्षरश: एक -एक बात बता दी .
आदमी डर कर कांपने लगा . अगले दिन वह शहर से बहुत दूर एक जेन मास्टर के पास गया और सारी बात बता दी .
मास्टर बोले , “ ये प्रेत बहुत चालाक है ! ”
“बिलकुल है , तभी तो मेरी एक-एक बात उसे पता होती है …”, “ आदमी घबराते हुए बोला .
मास्टर बोले , “ कोई बात नहीं मेरे पास इसका भी इलाज़ है . इस बार जब तुम्हारी पत्नी का भूत आये तो मैं जैसा कहता हूँ तुम ठीक वैसा ही करना .”
उस रात जब आत्मा वापस आई तो आदमी बोला , “ तुम इतनी चालाक हो …मैं तुमसे कुछ भी नहीं छिपा सकता . और जैसा कि तुम चाहती हो मैं अपनी पत्नी को छोड़ने के लिए भी तैयार हूँ पर उसके लिए तुम्हे एक प्रश्न का उत्तर देना होगा …और अगर तुम उत्तर न दे पायी तो तुम्हे हमेशा -हमेशा के लिए मेरा पीछा छोड़ना होगा …”
पत्नी का भूत बोला ,” मंजूर है …पूछो अपना प्रश्न ”
आदमी ने फ़ौरन ज़मीन पर पड़े बहुत सारे छोटे -छोटे कंकड़ अपनी मुट्ठी में भर लिए और बोला , “बताओ मेरी मुट्ठी में कितने कंकड़ हैं ?”
और ठीक उसी समय भूत गायब हो गया .
कुछ हफ़्तों बाद वो एक बार फिर से जेन मास्टर के पास उनका शुक्रिया अदा करने पहुंचा .
“मास्टर , उस भूत से मेरा पीछा छुड़ाने के लिए मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा .”, आदमी बोला , “ पर मैं ये नहीं समझ पाया की आखिर उस प्रश्न में ऐसा क्या था कि एक झटके में ही भूत गायब हो गया ?”
मास्टर बोले , “ बेटा , दरअसल कोई भूत था ही नहीं ! ”
“मतलब !”, आदमी आश्चर्य से बोला .
“ हाँ , कोई भूत था ही नही , दरअसल दूसरी शादी करने की वजह से तुम्हे एक अपराधबोध महसूस हो रहा था और उसी वजह से तुम्हारा दिमाग एक भ्रम की स्थिति पैदा कर तुम्हे भूत का अनुभव करा रहा था .”, मास्टर ने समझाया .
“ पर ऐसा था तो वो मेरी हर एक बात कैसे जान जाता था ?”, आदमी ने पुछा .
मास्टर मुस्कुराये , “ क्योंकि वो तुम्हारा बनाया हुआ ही भूत था ,इसलिए जो कुछ तुम जानते थे वही वो भी जानता था . और यही कारण था कि मैंने तुम्हे वो कंकड़ वाला प्रश्न पूछने को कहा , क्योंकि मैं जानता था कि इसका उत्तर तुम्हे भी नहीं पता होगा और इसलिए भूत भी इसका उत्तर नहीं दे पायेगा और तुम्हे तुम्हारे दिमाग की ही उपज से छुटकारा मिल जायेगा. ”
आदमी अब पूरी बात समझ चुका था . उसने एक बार फिर मास्टर को धन्यवाद किया और अपने घर लौट गया .
Friends , कई बार हमारे मन में भी किसी पुरानी बात को लेकर एक guilt feeling रह जाती है. कहानी में भूत का आना उसी तरह की फीलिंग का एक extreme form है। पर अधिकतर मामलों में हम किसी पुरानी घटना को याद कर अफ़सोस करते हैं और कभी-कभार खुद पर क्रोधित भी हो जाते हैं। ऐसा बार-बार करना गलत है , अपने भूत की वजह से अपने भविष्य और वर्तमान को बिगाड़ने में कोई समझदारी नहीं है। इसलिए अगर आप भी किसी पुरानी घटना की वजह से अपराधबोध महसूस करते हैं तो ऐसा ना करें , गलतियां करना मनुष्य का स्वाभाव है , सभी करते हैं , आपसे भी हुई तो कोई बात नहीं….उस घटना को पीछे छोड़ें और अपने जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में काम करें।

पर क्या भूत सच में होते हैं ?
यह एक ऐसी बहस है जो सदियों से चली आ रही है. जहाँ करोड़ों लोग मानते हैं कि भूत सच में होते हैं वहीँ बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो भूत या आत्माओं के अस्तित्व को लेकर सहमत नहीं हैं. खैर जो भी हो, अकसर हमें भूतों से जुडी कुछ घटनाओं का जिक्र सुनने को मिल ही जाता है और अगर बताने वाले की माने तो ये घटनाएँ सच्ची होती हैं. तो आइये हम ऐसी ही कुछ सच्ची भुतिया कहानियों के बारे में जानते हैं:
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नकारात्मक लोगों के प्रति "बहरे" साखी


एक मेढक पहाड़ की चोटी पर चढ़ने का सोचता है और आगे बढ़ता है
बाकी के सारे मेंढक शोर मचाने लगते हैं "ये असंभव है.. आज तक कोई नहीं चढ़ा.. ये असंभव है.. नहीं चढ़ पाओगे"
मगर मेंढक आख़िर पहाड़ की चोटी पर पहुँच ही जाता है.. जानते हैं क्यूँ?
क्योंकि वो मेंढक "बहरा" होता है.. और सारे मेंढकों को चिल्लाते देख सोचता है कि सारे उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं
इसलिए अगर आपको अपने लक्ष्य पर पहुंचना है तो नकारात्मक लोगों के प्रति "बहरे" हो जाइए |
राधा स्वामी जी !!!
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मेरा गुरु सच्चा साखी


करतार पुर में गुरु नानक साहेब जी के दर्शन करने के लिए एक दिन बहुत संगत आ गयी। उस टाईम वहाँ लंगर प्रसाद चल रहा था। आई हुई बहुत सी संगत की वजह से वहाँ लंगर प्रसाद कम पड़ने लगा। ये बात जब सेवक जी ने आ कर गुरु नानक महाराज जी को बताया तो, सतगुरु बाबा गुरु नानक जी ने उस सेवक को हुक्म किया की, कोई सिख सामने कीकर के वृक्ष पर चढ़ कर उसे हिलाओ उससे मिठाइयां बरसेंगी वो मिठाइयां आई संगत में बाँट दो। ये सुनकर गुरु पुत्र बाबा श्री चन्द जी और बाबा लक्षमी दास जी बोले, बाबा जी कीकर का तो अपना भी कोई फल नही होता बस कांटे ही काँटे होते है उससे कहाँ मिठाइयां बरसेंगी।
कुछ कच्ची श्रद्धा वाले भगत बोले – सारा संसार घूम घूम कर बज़ुर्गी में गुरु नानक साहेब जी सठिया गए है, भला कीकर से कभी मिठाइयां बरसी है?
ये सब बातें सुन रहे भाई लहणे को हुक्म हुआ, भाई लहणे तू चढ़, बिना इक पल की देर लगाए भाई लहणा कीकर पर चढ़ गए और भाई लहणा जोर जोर से कीकर को हिलाने लगे, दुनिया ने ये सब देखा, कीकर से मिठाइयां बरसी और वे सारी मिठाइयां सारी संगत खाई और जब सारी संगत त्रिपत हो गयी तो हुक्म हुआ।
लहणे अब तू नीचे आजा तो भाई लहणा बाबा जी के आदेश से नीचे आ गए।
गुरु नानक साहेब जी ने पूछा भाई लहणे को, जब किसी भी संत को इस बात पर भरोसा ही नही था की कीकर से मिठाइयाँ आएगी, तो तूने कैसे मुझ पे भरोसा किया… इस प्रसन्न के जवाब में भाई लहणे ने कहा सतगुरु जी, आप ने ही तो सिखाया है की कब, क्या, कैसे, क्यों, किन्तु, परन्तु, लेकिन ये शब्द सेवक के लिए नही बने।
मेरे आप के ऊपर के विशवास ने मुझे कहा कि जब बाबा जी ने कहा है, तो मिठाइयां जरूर बरसेंगी।
मेरा गुरु पूरा है। मेरा गुरु समर्थ है। मेरा गुरु सच्चा है। मेरी अक्ल् छोटी है पर मेरा गुरु कभी छोटा नहीं।
बाबा गुरु नानक साहेब जी ने जब ये सुना, ये सुनते ही भाई लहणे को छाती से लगा लिया। यही भाई लहणा गुरु अंगद साहेब बनकर गुरु नानक साहेब की गद्दी पर विराजमान हुए।।
राधा स्वामी जी
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Friday 8 December 2017

चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती साखी


सन्तों की अपनी ही मौज होती है! एक संत अपने शिष्य के साथ किसी अजनबी नगर में पहुंचे। रात हो चुकी थी और वे दोनों सिर छुपाने के लिए किसी आसरे की तलाश में थे। उन्होंने एक घर का दरवाजा खटखटाया, वह एक धनिक का घर था और अंदर से परिवार का मुखिया निकलकर आया।
वह संकीर्ण वृत्ति का था, उसने कहा – “मैं आपको अपने घर के अंदर तो नहीं ठहरा सकता लेकिन तलघर में हमारा स्टोर बना है। आप चाहें तो वहां रात को रुक सकते हैं, लेकिन सुबह होते ही आपको जाना होगा।” वह संत अपने शिष्य के साथ तलघर में ठहर गए। वहां के कठोर फर्श पर वे सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी संत को दीवार में एक दरार नजर आई। संत उस दरार के पास पहुंचे और कुछ सोचकर उसे भरने में जुट गए। शिष्य के कारण पूछने पर संत ने कहा-“चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं।”
अगली रात वे दोनों एक गरीब किसान के घर आसरा मांगने पहुंचे। किसान और उसकी पत्नी ने प्रेमपूर्वक उनका स्वागत किया। उनके पास जो कुछ रूखा-सूखा था, वह उन्होंने उन दोनों के साथ बांटकर खाया और फिर उन्हें सोने के लिए अपना बिस्तर दे दिया। किसान और उसकी पत्नी नीचे फर्श पर सो गए। सवेरा होने पर संत व उनके शिष्य ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी रो रहे थे क्योंकि उनका बैल खेत में मरा पड़ा था।

यह देखकर शिष्य ने संत से कहा- ‘गुरुदेव, आपके पास तो कई सिद्धियां हैं, फिर आपने यह क्यों होने दिया? उस धनिक के पास सब कुछ था, फिर भी आपने उसके तलघर की मरम्मत करके उसकी मदद की, जबकि इस गरीब ने कुछ ना होने के बाद भी हमें इतना सम्मान दिया फिर भी आपने उसके बैल को मरने दिया। संत फिर बोले-“चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती हैं।”
उन्होंने आगे कहा- ‘उस धनिक के तलघर में दरार से मैंने यह देखा कि उस दीवार के पीछे स्वर्ण का भंडार था। चूंकि उस घर का मालिक बेहद लोभी और कृपण था, इसलिए मैंने उस दरार को बंद कर दिया, ताकि स्वर्ण भंडार उसके हाथ ना लगे। इस किसान के घर में हम इसके बिस्तर पर सोए थे।
रात्रि में इस किसान की पत्नी की मौत लिखी थी और जब यमदूत उसके प्राण हरने आए तो मैंने रोक दिया। चूंकि वे खाली हाथ नहीं जा सकते थे, इसलिए मैंने उनसे किसान के बैल के प्राण ले जाने के लिए कहा। यह सुनकर शिष्य संत के समक्ष नतमस्तक हो गया।
ठीक इसी तरह गुरु की कृपा वह नहीं है जो हम चाहते बल्कि गुरु-कृपा तो वह है जो गुरुदेव चाहते हैं
।। राधा स्वामी जी ।।

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Thursday 7 December 2017

एक ही परमात्मा साखी


एक मुसलमान फकीर हुआ, सरमद। सरमद के जीवन में एक बड़ी मीठी घटना है। सरमद पर, जैसा कि सदा होता है, उस जमाने के मौलवियों ने एक मुकदमा चलवाया। पंडित सदा से ही संत के विरोध में रहा है। सरमद पर एक मुकदमा चलवाया, सम्राट के दरवाजे पर सरमद को बुलवाया गया। मुसलमानों में एक सूत्र है। वह सूत्र यह है कि एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं उसके सिवाय, और एक ही पैगंबर है उसका, मुहम्मद। लेकिन सूफी फकीर इसमें से आधा हिस्सा छोड़ देते हैं। वे पहला हिस्सा तो कहते हैं कि एक परमात्मा के सिवाय और कोई परमात्मा नहीं है। दूसरा हिस्सा कि उसका एक ही पैगंबर है मुहम्मद, यह वे छोड़ देते हैं। क्योंकि वे कहते हैं कि उसके बहुत पैगंबर हैं। इसलिए सूफियों के खिलाफ सदा से ही मुस्लिम थियोलाजी जो है वह सदा से सूफियों के खिलाफ रही है। सरमद तो और भी खतरनाक था। वह सूफियों के इस पूरे सूत्र को भी पूरा नहीं कहता था। इसमें से भी आधा उसने छोड़ दिया था। सूत्र है कि एक ही परमात्मा के सिवाय कोई परमात्मा नहीं। वह सिर्फ इतना ही कहता था, कोई परमात्मा नहीं— आखिरी हिस्से को।
अब यह तो हद हो गई। मुहम्मद को छोड़ दो चलेगा। तब तक भी आदमी नास्तिक नहीं हो जाता। सिर्फ इतना ही है कि मुसलमान नहीं रह जाता। और मुसलमान न रह जाने से कोई धार्मिक नहीं रह जाता, ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन इस सरमद के साथ क्या करोगे? यह कहता है, कोई परमात्मा नहीं।
तो सरमद को दरबार में ले जाया गया। और सम्राट ने पूछा, सरमद, क्या तुम ऐसी बात कहते हो कि कोई परमात्मा नहीं? सरमद ने कहा, कहता हूं। और उसने जोर से दरबार में कहा, कोई परमात्मा नहीं। सम्राट ने कहा, तुम नास्तिक हो क्या? उसने कहा, नहीं, मैं नास्तिक नहीं हूं। लेकिन अभी तक मुझे किसी परमात्मा का कोई पता नहीं चला, तो मैं कैसे कहूं। जितना मुझे पता चला है, उतना ही कहता हूं। इस सूत्र में मुझे आधे का ही पता है अभी कि कोई परमात्मा नहीं। आधे का मुझे कोई पता नहीं। जिस दिन पता हो जाएगा, उस दिन कह दूंगा। और जब तक पता नहीं है, तब तक झूठ कैसे बोलूं! और धार्मिक आदमी झूठ तो नहीं बोल सकता। बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। आखिर उसको फांसी की सजा दी गई। और दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने उसकी गरदन काटी गई।
यह कहानी नहीं है। हजारों —लाखों लोगों ने उस भीड़ में उसकी फांसी को देखा। उसकी गरदन काटी गई मस्जिद के दरवाजे पर और मस्जिद की सीढ़ियों से उसकी गरदन नीचे गिरी और उसके कटे हुए सिर से आवाज निकली, एक ही परमात्मा है, उसके सिवाय कोई परमात्मा नहीं।
तो जो लाखों लोग भीड़ में उसके प्यार करने वाले खड़े थे, उन्होंने कहा, पागल सरमद, अगर इतनी ही बात पहले कह दी होती! पर सरमद ने कहा, जब तक गरदन न कटे, तब तक उसका पता कैसे चले। जब पता चला, तब मैं कहता हूं कि परमात्मा है, उसके सिवाय कोई परमात्मा नहीं। लेकिन जब तक मुझे पता नहीं था, तब तक मैं कैसे कह सकता था।
कुछ सत्य हैं जो हमें गुजर कर ही पता चलते हैं। मृत्यु का सत्य तो हमें मृत्यु से गुजर कर ही पता चलेगा। लेकिन उसका पता चल सके, इसकी तैयारी हमें जिंदगी में ही करनी पड़ेगी। मरने की तैयारी भी जिंदगी में करनी पड़ती है। और जो आदमी जिंदगी में मरने की तैयारी नहीं कर पाता, वह बड़े गलत ढंग से मरता है। और गलत ढंग से जीना तो माफ किया जा सकता है, गलत ढंग से मरना कभी माफ नहीं किया जा सकता। क्योंकि वह चरम बिंदु है, वह अल्टीमेट है, वह आखिरी है, वह जिंदगी का सार है, निष्कर्ष है। अगर जिंदगी में छोटी —मोटी भूलें यहां —वहा की हों तो चल सकता है, लेकिन आखिरी क्षण में तो भूल सदा के लिए थिर और स्थायी हो जाएगी।
राधा सवामी जी
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तुम्हारा कुछ भी नहीं साखी


एक आदमी मर गया. जब उसे महसूस हुआ तो उसने देखा कि भगवान उसके पास आ रहे हैं और उनके हाथ में एक सूट केस है.
भगवान ने कहा --पुत्र चलो अब समय हो गया.
आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जबाव दिया -- अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं. मैं क्षमा चाहता हूँ किन्तु अभी चलने का समय नहीं है. आपके इस सूट केस में क्या है?
भगवान ने कहा -- तुम्हारा सामान.
मेरा सामान? आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं, मेरे कपडे, मेराधन?
भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा -- ये वस्तुएं तुम्हारी नहीं हैं. ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं.
आदमी ने पूछा -- मेरी यादें?
भगवान ने जबाव दिया -- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं. वे तो समय की थीं.
फिर तो ये मेरी बुद्धिमत्ता होंगी?
भगवान ने फिर कहा -- वह तो तुम्हारी कभी भी नहीं थीं. वे तो परिस्थिति जन्य थीं.
तो ये मेरा परिवार और मित्र हैं?
भगवान ने जबाव दिया -- क्षमा करो वे तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे. वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे.
फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा?
भगवान ने मुस्कुरा कर कहा -- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है.
तो क्या यह मेरी आत्मा है?
नहीं वह तो मेरी है --- भगवान ने कहा.
भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस ले लिया और उसे खोल दिया यह देखने के लिए कि सूट केस में क्या है. वह सूट केस खाली था.
आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा -- मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था.
भगवान ने जबाव दिया -- यही सत्य है. प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया, वही तुम्हारा था. जिंदगी क्षणिक है और वे ही क्षण तुम्हारे हैं.
इस कारण जो भी समय आपके पास है, उसे भरपूर जियें. आज में जियें. अपनी जिंदगी जिए.
खुश होना कभी न भूलें, यही एक बात महत्त्व रखती है.
भौतिक वस्तुएं और जिस भी चीज के लिए आप यहाँ लड़ते हैं, मेहनत करते हैं...आप यहाँ से कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं.
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बूढी औरत की साखी


जनवरी की सर्द भरी रात थी सडक पर चारो तरफ सन्नाटा फैला हुआ था दूर दूर तक कोई नजर नही आ रहा था बीच बीच में सिर्फ कुत्तो के भौकने की आवाज़ आती थी जो की सडक की सन्नाटे को बीच बीच में चिर रही थी लेकिन सडक के किनारे बनी झोपडी में वह बूढी माँ अपने बच्चे के साथ किसी तरह उस ठंड से बचने की कोशिश कर रही थी लेकिन फटी चादर और झोपडी में से आने वाली सर्द हवाए उस माँ बेटे के जीवन की बार बार परीक्षा ले रही थी वे दोनों जितना ठंड से बचने की कोशिश करते ठंड उतनी ही बढती जा रही थी जिसके कारण उस बूढी माँ से उसका बेटा बोलता माँ क्या हम हमेसा ऐसे ही ठंड से कापते रहेगे क्या हम लोगो के पास अपना पक्का घर और ओढने के लिए कभी चादर नही होगा क्या ?

जिससे यह सब बाते सुनकर उस बूढी माँ का मन ही मन कलेजा काप जाता था लेकिन कभी जीवन से हिम्मत न हारने वाली वह बूढी माँ अपने बेटे को सांत्वना देती की बेटा जब तुम बड़े हो जाओगे तो वो सब हमारे पास होगा जो तुम पाना चाहते हो बस तुम अपने पैरो पर खड़ा हो जाओ और फिर तुम इतना कमाना की चादर की कीमत तुम्हारी कमाई से कम लगे जिससे आसानी से तुम अपने लिए चादर खरीद सकते हो ,

अपनी माँ से यह बाते सुनकर उस बेटे का हिम्मत जोश से भर जाता और फिर मन ही मन सोचता की जरुर एक दिन वह बहुत बड़ा आदमी बनेगा जिससे वह अपने और अपने माँ के लिए चादर खरीदेगा जिससे फिर कभी ठंड से अपनी माँ को और खुद को परेशान नही होना पड़ेगा और इसी सपने को पूरा करने के लिए उस बूढी माँ का बेटा अपने माँ के साथ दिन भर मेहनत मजदूरी करता और मन ही मन सोचता की एक दिन जरुर उसका सपना पूरा होगा

अपने बेटे के ठंड से परेशान होने की वजह से वह बूढी माँ जहा काम करती थी अगले दिन उस सेठ से जाकर बोली की मुझे एक चादर खरीदने के लिए कुछ पैसे या कोई चादर दे दे, गरीब बूढी माँ की बाते सुनकर सेठ का हृदय पिघल गया और उसने एक चादर दे दिया तो वह बूढी माँ अपने सेठ से चादर की कीमत पूछने लगी तो सेठ बोला जो तुम्हे ठीक लगे और जब तुम्हारे पास पैसे हो तब चादर की कीमत दे देना यह बाते सुनकर वह बूढी औरत मन ही मन अपने सेठ को आशीर्वाद दे रही थी और उसे ये भी चिंता रहती थी की वह वह उस चादर की कीमत कैसे चुकाएगी

समय बीतता गया उस बूढी माँ के हाथ पाँव पहले के मुकाबले कमजोर हो गये और वह लड़का बड़ा हो गया जिससे अब वह लड़का अपनी बूढी माँ को काम पर नही जाने देता और खुद को इतना काबिल बना लिया था की वह पढना लिखना जान गया था जिसके कारण उसे उसी सेठ के यहाँ नौकरी मिल गयी वह लड़का अपनी माँ की तरह बहुत ही मेहनती था जिससे उसका सेठ भी उस लड़के के काम से प्रभावित होकर उसकी पहली तनख्वाह पर उसके तनख्वाह के साथ उसके लिए एक चादर भेट करनी चाही तो यह सुनकर उस लड़के की आखे भर आई और वह अपने सेठ से बोला की साहब आप जो चादर देना चाहते है उसे मुझे न देकर अगर मेरी माँ को भेट करेगे तो शायद चादर की असली कीमत होंगी क्यूकी अगर आज जिस मुकाम पर मै पंहुचा हु तो शायद इसमें मेरी माँ का ही हाथ है और इसलिए इस चादर को मेरी माँ को भेट करना

यह सब बाते सुनकर उस सेठ का हृदय गदगद हो उठा और बोला ठीक है अगर तुम्हारी सोच इतनी अच्छी है तो तुम्हारे माँ से मै जरुर मिलुगा तुम कल अपनी माँ के साथ आना और फिर जब अगले दिन वह बूढी औरत अपने बेटे के साथ उस सेठ के पास गयी तो तुरंत उसने अपने सेठ को पहचान लिया और सेठ द्वारा दिए गये पहले चादर की कीमत देने की बात याद आ गयी और फिर जब सेठ उस बूढी औरत को चादर देने लगा तो उसके आँख से आसू छलक आये और वह बोली की मै अभी पहले दी हुई ही चादर की कीमत आपको दे नही पायी हु अब भला इस चादर की कीमत कैसे चुकाऊगी.

तो यह बाते सुनकर उस बूढी औरत को तुरंत पहचान गया और कहा की मेरे दिए हुए पहले चादर की कीमत तो मुझे तुम्हारे होनहार बेटे के रूप में मिल गया है जो की शायद चादर की कीमत से कही ज्यादा है यह बाते सुनकर उस बूढी माँ की आखे भर आई थी और शायद आज पहली बार उसे अपने चादर की कीमत का पता चल गया था जो की कही न कही उसके जिन्दगी में ख़ुशी लेकर आई थी

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Wednesday 6 December 2017

बुरे काम का फल साखी


यह उस समय की परमार्थ सखी है जब बड़े महाराज जी रावलपिंडी में थे | एक बार की बात है एक फौजी था | उस समय फ़ौज में जंग छिड़ गई | दुश्मन ने फौजी से गोलीबारी शुरू हो गई | फौजी घोड़ी पे था | अचानक घोड़ी बेकाबू हो के दुश्मन की तरफ चली गई | फौजी ने बहुत रोक पर वो न रुकी | दुश्मन ने घोड़ी के भी गोली मर दी और फौजी के भी | दोनों को मर दिया | फ़ौज मैं फौजी का हिसाब बनिए के पास होता था | फौजी के घर वाले उसका सारा सामान ले के गए पर वो पैसे नहीं लेके गए क्यों के उनको नहीं पता था और न ही बनिए को | थोड़ी समय बाद फौजी ने नौकरी छोड़ और अपने घर वापिस आ गया | फौजी ने घर आए कर शादी कर ली | २० साल हो गए इस बात को और फिर एक दिन वो बनिया बाबा जी के दोस्तों को मिला और अपने घर कहने के लिए ले आया | वो लोग बनिए के घर रुक गए जब रात को खाना खाने लगे तो रोने के आवाज सुनाई देने लगी | तो बाबा जी के दोस्तों ने कहा की यह आवाज़ कहाँ से आ रही है |तो बनिए ने कहा कुछ नहीं आप खाना खाओ | तो उन्हों ने कहा के नहीं पहले बताओ | तो बनिए ने बताया के यह मेरे बहु है1 १ महीने पहले मेरे बेटे की मौत हो गई थी | फ़ौज मैं से आने के बाद मेने शादी कार्लि और मेरे घर एक लड़का हुआ | लड़का बहुत बीमार रहने लगा | आखरी दिन मैं उसने अपने पिता को बताया के मैं अवहि फौजी हूँ जिसके २००० तेरे पास थे और यह मेरे पत्नी जो है यह वही घोड़ी है जीने मुझे धोके से दुश्मन से मरवाया था अब मेरा हिसाब पूरा हो चूका है और मेरा हिसाब आपसे पूरा हुआ आब मैं जा रहा हूँ |

शिक्षा - जो बुरे काम हम अपने जीवन में करते है उस्नका फल हमे इसी जीवन में ही भुगतना पड़ता है
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