Saturday 9 December 2017

गुरु सब एक है साखी


बाबा सरदार बहादुर सिंह जी सत्संग मैं बैठे थे | हजूर महाराज सावन सिंह जी का कोई प्रेमिओ सेवक सर नींचे कर के बोला | मैं डेरा चुद कर जाना चाहता हूँ अब मेरा यहाँ दिल नहीं लगता| मुझे इन ईंटो और इमारतों को देख कर बाबा सावन सिंह जी की याद आ जाती है | और मेरा दिल बैठ जाता है |यहाँ मैं और नहीं जी सकता |मैं जाना चाहता हूँ आप किरपा कर के मुझे जाने की इजाजत दीजिये | वो अभी भी निचे सर किये रो रहा था |
उनकी इस बात पर सरदार बहदुर सिंह जी कहने लगे | की ठीक है आप मेरे सामने बैठ जाओ और बढे बाबा जी का ध्यान करो
जब उसने ध्यान करना शुरू किया तो बाबा जी ने उसे सर ऊपर करने को कहा | जब उसने अपना सर उठाया तो सामने उसे बाबा सावन सिंह जी के दर्शन हो गए | और बाबा सावन सिंह जी कहने लगे की अब से तुम मुझे इनमे ही पाओगे । इतना कह कर बाबा जी चले गए |
तब उस सत्संगी ने बाबा जगत सिंह जी के पवन मैं सर रख कर रोना माफ़ी मांगी और डेरे से जाने का विचार बदल दिया |
शिक्षा : महाराज सावन सिंह जी के कहने का मतलब यही था की हम सब एक ही हैं आप किसी का ध्यान करोगे वो उसी रूप मैं आपके सामने परगट हो जायेंगे | हम लोग बेकार मैं बाबा जी यह कह कर बाँट देते हैं की मेने तो बाबा चरण सिंह जी से नाम दान लिया या मेने बाबा गुरिंदर सिंह जी से नाम लिया है |हमारा गुरु तो एक ही है बस हमारे सामने रूप बदल जाते हैं

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